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कविता

कोकइन : प्रथम हिस्सा

जीत नाराइन


1

मगज पर
पडा़ हुआ पर्दा
फिर से उठा
विचार फटकर
सफेद थक्‍कों में छित गया
बूँद-बूँद लहरियाकर
गिरकर काला धब्‍बा हो गया
जिसे मिटाया नहीं जा सकता
जैसे-अमादा हो गया है कोई
किसी लत में पड़कर


2

कुख्‍यात श्रीमान और श्रीमती जी
जैसे-अजगर गंदे पानी में
कडी़ सुरक्षा में
योजना लहाते हुए
जिनका बंगला-
मूल्‍यहीन कला के सामानों से\
गँजा हुआ है।


3

ऊँचे दिखनेवाले
पर भयभीत लोग
रचते हैं - बार-बार
आत्‍महीनता
जिसको मरना है।

 


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